
कौरव और पांडव का युद्ध का समाप्त हो गया था। पांडवों ने 36 वर्ष राज किया। जिस राजसत्ता के लिए इतना बड़ा युद्ध हुआ, पांडव उस राज सत्ता पूरे सुख-शांति के साथ नहीं भोग पाए। उनकी मां कुंति, उनके ताऊ धृतराष्ट्र और ताई गांधारी बुढ़ापे में वन में चले गए। वहां आग लगी और जल कर मर गए। श्रीकृष्ण भी संसार छोड़कर चले गए और यादव वंशी आपस में लड़कर मर गए। पांडव बड़े दुखी हो गए कि हमारे ही सामने सब बिखरता जा रहा है।
एक दिन युधिष्ठिर ने अपने चारों भाइयों को बुलाया और कहा कि जीवन में हमें जो चाहिए, वह जरूरी नहीं कि सब मिल जाए। इतना बड़ा युद्ध किया। अपने ही लोगों की लाश पर चढ़कर ये राजपाठ प्राप्त कर लिया, क्या हम शांत हो पाए। अब राजकाज परीक्षित को सौंपकर हम सब इकट्ठे होकर स्वर्ग की चलें।
अर्जुन ने पूछा था कि आप सभी को एक साथ लेकर क्यों चल रहे हैं?
तब युधिष्ठिर का कहना था कि एक उम्र के बाद अगर हो सके तो बढ़े-बूढ़ों को एक साथ रहना चाहिए। अपने बच्चों के लिए जो अच्छा हो सके वो कर दिया। उनके जीवन में झांकने की ज्यादा कोशिश नहीं करनी चाहिए। चलो, एक साथ चलते हैं और पांडव स्वर्गारोहण कर गए।
इसलिए सभी की जिंदगी में जब आखिरी वक्त आता है तो सबकुछ बिखरा-बिखरा सा दिखने लगता है। चाहे परिवार हो, चाहे व्यापारिक संस्थान हो या समाज हो। सबकी एक आयु है। अच्छे-अच्छे संगठन एक समय के बाद बिखर जाते हैं। समर्थ से समर्थ व्यक्ति भी जैसा चाहे वैसा हो जाए, नहीं कर पाएगा।
श्रीराम के पिता राजा दशरथ अपनी सभा में बैठे हुए थे। वे सबसे सुझाव ले रहे थे कि क्या राम को राजा बना दिया जाए? सुझावों के साथ-साथ लोग उनकी तारीफों के पुल भी बांध रहे थे। जब दशरथ की बहुत तारीफ होने लगी तो दशरथ ने भरी सभा में आईना निकाला और अपना चेहरा देखने लगे। सबको आश्चर्य हुआ, दशरथ ऐसा कभी नहीं करते थे, लेकिन उस दिन उन्होंने ऐसा किया।
सभी जानते थे कि दर्पण एकांत में देखा जाता है। सबके सामने आईना देखना अभद्रता है, लेकिन दशरथ देख रहे थे। उन्हें दिखा कि उनके कान के पास के बाल सफेद हो गए हैं और मुकुट थोड़ा तिरछा हो गया। उन्होंने मुकुट को सीधा किया और कान के पास सफेद बालों से ये समझ लिया कि बुढ़ापा अब आ रहा है। अब सत्ता नई पीढ़ी को सौंप दी जाए और उन्होंने श्रीराम के राजतिलक का निर्णय ले लिया।
बाद में किसी ने उनसे अकेले में पूछा कि सबके सामने आप आईना क्यों देख रहे थे? उन्होंने जवाब दिया “लोग मेरी तारीफ कर रहे थे और मैंने दिल के आईने में देखा कि क्या सचमुच मैं इस लायक हूं? मेरा मुकुट थोड़ा तिरछा हो गया है, यानी व्यवस्था अब एक नई व्यवस्था की मांग कर रही है और मैंने राम के लिए निर्णय ले लिया।”
इसलिए जब भी कोई आपकी तारीफ करे, अपने दिल के आईने में जरूर देखना चाहिए कि क्या आप इस योग्य हैं? क्योंकि आप क्या हैं, ये आपसे अच्छा कोई नहीं जान सकता है। लोग जो देखते हैं, वह कहते हैं, लेकिन आप जो होते हैं, वह आप ही जानते हैं।