भगवान शिव को आशुतोष और अवढ़रदानी भी कहा जाता है। भगवान शिव शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले और अपने भक्तों को मनाचाहा वरदान प्रदान करते हैं। मान्यता है कि भगवान शिव को जल अति प्रिय है विशेष रूप से सावन के महीने में शिवलिंग पर जल चढ़ाने से शंकर जी अवश्य प्रसन्न होते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले विष का पान किया कर लिया था। इस कारण उनके शरीर का ताप बहुत तेजी से बढ़ने लगा था। शंकर जी को शीतलता प्रदान करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन पर जल चढ़ाया। तब से ही शंकर जी को सावन में जल चढ़ाने की परम्परा चल रही है। लेकिन शंकर जी को जल चढ़ाते समय कुछ नियमों का ध्यान रखना चाहिए…
1- शिवलिंग पर कभी भी पूर्व दिशा में मुहं करके जल नहीं चढ़ाना चाहिए। पूर्व दिशा को भगवान शिव के आगमन की दिशा माना जाता है। ऐसा करने से शंकर जी के आगमन मार्ग में बाधा उत्पन्न होती है।
2- शंकर जी को जल को जल चढ़ाने के लिए सबसे उत्तम दिशा उत्तर की है। उत्तर की दिशा शंकरी की वाम अंगी होने के कारण माता पार्वती की दिशा मानी जाती है। इसलिए मान्यता है कि इस दिशा में मुहं करके जल चढ़ाने से भगवान शिव और पार्वती दोनों प्रसन्न होते हैं।
3- शंकर जी को तांबे, चांदी या कांसे के पात्र या लोटे से जल चढ़ाना चाहिए। स्टील के पात्र से जल चढ़ाना शुभ नहीं माना जाता है।
4- तांबे के पात्र से शंकर जी को कभी दूध नहीं चढ़ाना चाहिए। क्योकिं दूध और तांबे का संयोग विषैला होता है।
5- शंकर जी को जल खड़े होकर नहीं चढ़ाना चाहिए, बल्कि बैठ कर आराम से जल चढ़ाना चाहिए।
6- शिवलिंग पर जल तेजी से या तेज धार बना कर नहीं चढ़ाया जाता है। श्रद्धाभाव से धीरे-धीरे जल चढ़ाना चाहिए।
7- भगवान शिव को चढ़े हुए जल को कभी कचरना या लांघना नहीं चाहिए। इसलिए ही शिव जी की परिक्रमा भी आधी ही की जाती है।